Download HinduNidhi App
Baglamukhi Mata

जाने दशमहाविद्या माता बगलामुखी की उपासना विधि, मंत्र , कथा और मुख्य तथ्या

Baglamukhi MataHindu Gyan (हिन्दू ज्ञान)हिन्दी
Share This

Baglamukhi-mata

माता बगलामुखी, दस महाविद्याओं में आठवीं शक्ति, भगवती पार्वती का उग्र रूप हैं। इन्हें माता पीताम्बरा भी कहा जाता है। भोग और मोक्ष दोनों की प्रदानकर्ता, माता बगलामुखी की पूजा हरिद्रा गणपती की पूजा के बाद ही करनी चाहिए, अन्यथा पूजा का फल पूर्ण नहीं मिलता।

संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति, माता बगलामुखी का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। लोग इनकी उपासना करके शत्रुनाश, वाकसिद्धि और वाद-विवाद में विजय प्राप्त करते हैं। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में संकटों का अंत होता है।

माँ बगलामुखी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनके शत्रुओं का नाश भी करती हैं। वे सभी प्रकार के विघ्नों को दूर करती हैं और अपने भक्तों को सफलता प्रदान करती हैं। माँ बगलामुखी चालीसा का पाठ करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं, यदि आप माँ बगलामुखी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको नियमित रूप से उनकी चालीसा का पाठ करना चाहिए।

माता पार्वती की आठवीं महाविद्या, माँ बगलामुखी, अत्यंत दयालु और शक्तिशाली देवी हैं। जो भक्त उन पर श्रद्धा रखता है और भरोसे के साथ उनका ध्यान करता है, माँ उनका ध्यान रखती हैं। जो लोग दोनों संध्याओं में माँ बगलामुखी चालीसा का पाठ करते हैं, माँ उनकी सभी मनोकामनाओं को पूरी करती हैं।

बगलामुखी मंत्र का जाप:

बगलामुखी मंत्र का जाप करने से पहले बगलामुखी कवच पाठ भी अवश्य करना चाहिए।

माता बगलामुखी का स्वरूप:

माता बगलामुखी नवयौवना हैं, पीले रंग की साड़ी पहनती हैं, सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं, तीन नेत्र और चार हाथ होते हैं, सिर पर सोने का मुकुट है, और उनका शरीर सुंदर और पतला है। उनकी कांति सोने जैसी है और वे सुंदर मुस्कान वाली हैं, जो मन को मोह लेती है।

माता बगलामुखी उपासना लाभ :

माता बगलामुखी की उपासना करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे:

  • शत्रुओं का नाश
  • वाकसिद्धि
  • वाद-विवाद में विजय
  • जीवन में संकटों का अंत
  • भोग और मोक्ष की प्राप्ति

माता बगलामुखी का मंत्र:

“ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं बगलामुखी देव्यै नमः”

माता बगलामुखी की उपासना विधि:

माता बगलामुखी की उपासना के लिए निम्न विधि का पालन करें:

  • स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • माता बगलामुखी की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वलित करें।
  • फूल, फल और मिठाई अर्पित करें।
  • बगलामुखी कवच का पाठ करें।
  • बगलामुखी मंत्र का जाप करें।
  • आरती करें।

बगलामुखी माता की कथा

पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार, देवी बगलामुखी का अवतार सतयुग में हुआ था। उस समय एक भयंकर ब्रह्मांडीय तूफान आया था, जिससे संपूर्ण विश्व में हाहाकार मच गया था। तीनों लोक संकट में पड़ गए थे और इस विनाशकारी तूफान से बचने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।

भगवान विष्णु ने इस आपदा से बचने के लिए भगवान शंकर का स्मरण किया। भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि इस विनाशकारी तूफान को रोकने के लिए देवी शक्ति के अतिरिक्त कोई अन्य शक्ति नहीं है। उन्होंने भगवान विष्णु को देवी शक्ति की शरण में जाने की सलाह दी।

भगवान शिव के कहने पर भगवान विष्णु हरिद्रा सरोवर के निकट जाकर कठोर तप करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी शक्ति बगलामुखी के रूप में अवतरित हुईं। देवी बगलामुखी ने अपनी शक्ति से उस भयंकर तूफान को शांत कर दिया और सृष्टि का विनाश रुक गया।

देवी बगलामुखी को देवी शक्ति का ही एक रूप माना जाता है। वे दस महाविद्याओं में से एक हैं और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा की जाती है।

मां बगलामुखी की पूजा विधान:

  1. तैयारी:
  • सुबह स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें।
  • यदि संभव हो तो व्रत रखें।
  • पूजा अकेले या सिद्ध व्यक्ति के साथ करें।
  • पूर्व दिशा में पूजा करें।
  • गंगाजल से स्थान को शुद्ध करें।
  • चौकी पर पीले वस्त्र बिछाकर मां बगलामुखी की मूर्ति स्थापित करें।
  • हाथ धोकर आसन को पवित्र करें।
  1. संकल्प:
  • हाथ में पीले चावल, हल्दी, पीले फूल और दक्षिणा लेकर बगलामुखी व्रत का संकल्प लें।
  1. पूजा:
  • धूप और दीप से माता की पूजा करें।
  • फल और पीले लड्डू चढ़ाएं।
  • निराहार रहें (रात्रि में फल का प्रसाद ले सकते हैं)।
  1. समापन:
  • अगले दिन पूजा के बाद भोजन करें।

अतिरिक्त:

  • मां बगलामुखी मंत्रों का जप करें।
  • शांत रहकर माता का ध्यान करें।
  • सच्ची श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा करें।

बगलामुखी चालीसा (Baglamukhi Chalisa):

|| श्री गणेशाय नमः ||

श्री बगलामुखी चालीसा

नमो महाविधा बरदा , बगलामुखी दयाल |
स्तम्भन क्षण में करे , सुमरित अरिकुल काल ||

नमो नमो पीताम्बरा भवानी ,
बगलामुखी नमो कल्यानी | 1|

भक्त वत्सला शत्रु नशानी ,
नमो महाविधा वरदानी |2 |

अमृत सागर बीच तुम्हारा ,
रत्न जड़ित मणि मंडित प्यारा |3 |

स्वर्ण सिंहासन पर आसीना ,
पीताम्बर अति दिव्य नवीना |4 |

स्वर्णभूषण सुन्दर धारे ,
सिर पर चन्द्र मुकुट श्रृंगारे |5 |

तीन नेत्र दो भुजा मृणाला,
धारे मुद्गर पाश कराला |6 |

भैरव करे सदा सेवकाई ,
सिद्ध काम सब विघ्न नसाई |7 |

तुम हताश का निपट सहारा ,
करे अकिंचन अरिकल धारा |8 |

तुम काली तारा भुवनेशी ,
त्रिपुर सुन्दरी भैरवी वेशी |9 |

छिन्नभाल धूमा मातंगी ,
गायत्री तुम बगला रंगी |10 |

सकल शक्तियाँ तुम में साजें,
ह्रीं बीज के बीज बिराजे |11 |

दुष्ट स्तम्भन अरिकुल कीलन,
मारण वशीकरण सम्मोहन |12 |

दुष्टोच्चाटन कारक माता ,
अरि जिव्हा कीलक सघाता |13 |

साधक के विपति की त्राता ,
नमो महामाया प्रख्याता |14 |

मुद्गर शिला लिये अति भारी ,
प्रेतासन पर किये सवारी |15 |

तीन लोक दस दिशा भवानी ,
बिचरहु तुम हित कल्यानी |16 |

अरि अरिष्ट सोचे जो जन को ,
बुध्दि नाशकर कीलक तन को |17 |

हाथ पांव बाँधहु तुम ताके,
हनहु जीभ बिच मुद्गर बाके |18 |

चोरो का जब संकट आवे ,
रण में रिपुओं से घिर जावे |19 |

अनल अनिल बिप्लव घहरावे ,
वाद विवाद न निर्णय पावे |20 |

मूठ आदि अभिचारण संकट ।
राजभीति आपत्ति सन्निकट |21|

ध्यान करत सब कष्ट नसावे ,
भूत प्रेत न बाधा आवे |22 |

सुमरित राजव्दार बंध जावे ,
सभा बीच स्तम्भवन छावे |23 |

नाग सर्प ब्रर्चिश्रकादि भयंकर ,
खल विहंग भागहिं सब सत्वर|24|

सर्व रोग की नाशन हारी,
अरिकुल मूलच्चाटन कारी |25 |

स्त्री पुरुष राज सम्मोहक ,
नमो नमो पीताम्बर सोहक |26 |

तुमको सदा कुबेर मनावे ,
श्री समृद्धि सुयश नित गावें |27 |

शक्ति शौर्य की तुम्हीं विधाता ,
दुःख दारिद्र विनाशक माता|28|

यश ऐश्वर्य सिद्धि की दाता ,
शत्रु नाशिनी विजय प्रदाता | 29 |

पीताम्बरा नमो कल्यानी ,
नमो माता बगला महारानी |30|

जो तुमको सुमरै चितलाई ,
योग क्षेम से करो सहाई |31 |

आपत्ति जन की तुरत निवारो ,
आधि व्याधि संकट सब टारो|32|

पूजा विधि नहिं जानत तुम्हरी,
अर्थ न आखर करहूँ निहोरी |33|

मैं कुपुत्र अति निवल उपाया ,
हाथ जोड़ शरणागत आया |34 |

जग में केवल तुम्हीं सहारा ,
सारे संकट करहुँ निवारा |35 |

नमो महादेवी हे माता ,
पीताम्बरा नमो सुखदाता |36 |

सोम्य रूप धर बनती माता ,
सुख सम्पत्ति सुयश की दाता |37|

रोद्र रूप धर शत्रु संहारो ,
अरि जिव्हा में मुद्गर मारो |38|

नमो महाविधा आगारा,
आदि शक्ति सुन्दरी आपारा |39 |

अरि भंजक विपत्ति की त्राता ,
दया करो पीताम्बरी माता | 40 |

रिद्धि सिद्धि दाता तुम्हीं , अरि समूल कुल काल |
मेरी सब बाधा हरो , माँ बगले तत्काल ||

माँ बगलामुखी, देवी दुर्गा का ही एक रूप हैं। जब भी आप माता बगलामुखी आरती करें, तो पूर्ण श्रद्धा और भक्तिभाव से करें, उनकी पूजा और स्तुति करें। माँ अपनी कृपा सदैव बनाए रखती हैं और हम सभी पर अपना आशीर्वाद बरसाती हैं। वे अत्यंत दयालु हैं और सदा ही अपने बच्चों का ध्यान रखती हैं।

Baglamukhi Aarti (माता बगलामुखी आरती)

जय जयति सुखदा, सिद्धिदा, सर्वार्थ – साधक शंकरी।
स्वाहा, स्वधा, सिद्धा, शुभा, दुर्गानमो सर्वेश्वरी ।।

जय सृष्टि-स्थिति-कारिणि-संहारिणि साध्या सुखी।
शरणागतो-अहं त्राहि माम् , मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

जय प्रकृति-पुरूषात्मक-जगत-कारण-करणि आनन्दिनी।
विद्या-अविद्या, सादि-कादि, अनादि ब्रह्म-स्वरूपिणी।।

ऐश्वर्य-आत्मा-भाव-अष्टम, अंग परमात्मा सखी।
शरणागतो-अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

जय पंच-प्राण-प्रदा-मुदा, अज्ञान-ब्रह्म-प्रकाशिका।
संज्ञान-धृति-अज्ञान-मति-विज्ञान-शक्तिविधायिका ।।

जय सप्त-व्याहृति-रूप, ब्रह्म विभू ति शशी-मुखी ।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

आपत्ति-अम्बुधि अगम अम्ब! अनाथ आश्रयहीन मैं।
पतवार श्वास-प्रश्वास क्षीण, सुषुप्त तन-मन दीन मैं।।

षड्-रिपु-तरंगित पंच-विष-नद, पंच-भय-भीता दुखी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

जय परमज्योतिर्मय शुभम् , ज्योति परा अपरा परा।
नैका, एका, अनजा, अजा, मन-वाक्-बुद्धि-अगोचरा।।

पाशांकुशा, पीतासना, पीताम्बरा, पंकजमुखी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

भव-ताप-रति-गति-मति-कुमति, कर्त्तव्य कानन अति घना।
अज्ञान-दावानल प्रबल संकट विकल मन अनमना।।

दुर्भाग्य-घन-हरि, पीत-पट-विदयुत झरो करूणा अमी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

हिय-पाप पीत-पयोधि में, प्रकटो जननि पीताम्बरा!।
तन-मन सकल व्याकुल विकल, त्रय-ताप-वायु भयंकरा।।

अन्तःकरण दश इन्द्रियां, मम देह देवि! चतुर्दशी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

दारिद्रय-दग्ध-क्रिया, कुटिल-श्रद्धा, प्रज्वलित वासना। वासना।
अभिमान-ग्रन्थित-भक्तिहार, विकारमय मम साधना।।

अज्ञान-ध्यान, विचार-चंचल, वृत्ति वैभव-उन्मुखी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।

Found a Mistake or Error? Report it Now

Download HinduNidhi App

Leave a Comment